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अद्वितीय शक्ति की प्रतीक शिव

बुधवार 25 सितम्बर 2013
प्रस्तुतकर्ता :- उमा महादेव ग्रुप


ॐ नमः शिवाय

अद्वितीय शक्ति की प्रतीक शिव

 शिव के साथ जुड़ी हर चीज़ किसी न किसी अद्वितीय शक्ति की प्रतीक है, फिर चाहे वो त्रिशूल हो या डमरू। आइए उस शक्ति को पहचानकर अपने जीवन में धारण करें..

शिव को प्यारा पॉँच

रविवार 22 सितम्बर 2013
प्रस्तुतकर्ता :- उमा महादेव ग्रुप

ॐ नमः शिवाय

 शिव को प्यारा पॉँच

विशेष

शनिवार 21 सितम्बर 2013
प्रस्तुतकर्ता :- उमा महादेव ग्रुप 

ॐ नमः शिवाय


शिव का बीज अक्षर है ‘न’। यह अक्षर शिव की शक्ति ने उन्हें दिया। शिव से शक्ति को निकाल दो, वह शव हो जाएंगे। न चल पाएंगे, न बोल पाएंगे। उसी शक्ति ने संसार को ‘नम: शिवाय’ का मंत्र दिया, जिसका अर्थ है-जो कल्याणकारी है, उसको नमस्कार..

खजुराहो मंदिरों में सबसे विशाल कन्दारिया महादेव

बृहस्पतिवार 19 सितम्बर 2013
प्रस्तुतकर्ता :- उमा महादेव ग्रुप 

ॐ नमः शिवाय

खजुराहो मंदिरों में सबसे विशाल कन्दारिया महादेव 

खजुराहो के मंदिरों में सबसे विशाल कंदरिया महादेव मंदिर मूलतः शिव मंदिर है। मंदिर का निर्माणकाल १००० सन् ई. है तथा इसकी लंबाई १०२', चौड़ाई ६६' और ऊँचाई १०१' है। स्थानीय मत के अनुसार इसका कंदरिया नामांकरण, भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी के अनुसार हुआ है। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ, जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया।

विश्व का एकमात्र अर्धनारीश्वर काठगढ़ महादेव

 बुधवार 18 सितम्बर 2013
प्रस्तुतकर्ता :- उमा महादेव ग्रुप

ॐ नमः शिवाय

  विश्व का एकमात्र अर्धनारीश्वर काठगढ़ महादेव

शिव पुराण की विधेश्वर संहिता के अनुसार पद्म कल्प के प्रारंभ में एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता का विवाद उत्पन्न हो गया और दोनों दिव्यास्त्र लेकर युद्ध हेतु उन्मुख हो उठे। यह भयंकर स्थिति देख शिव सहसा वहां आदि अनंत ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए, जिससे दोनों देवताओं के दिव्यास्त्र स्वत: ही शांत हो गए।

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

बुधवार 28 अगस्त 2013
प्रस्तुतकर्ता :- उमा महादेव ग्रुप
ॐ नमः शिवाय
 

भगवान् शिव के द्वारा सृष्टि

सोमवार 26 अगस्त 2013
प्रस्तुतकर्ता :- उमा महादेव ग्रुप
 
ॐ नमः शिवाय

भगवान् शिव के द्वारा सृष्टि

जिस समय सर्वत्र केवल अन्धकार-ही-अन्धकार था; न सूर्य दिखायी देते थे न चन्द्रमा, अन्यान्य ग्रह-नक्षत्रों का भी कहीं पता नहीं था; न दिन होता था न रात। अग्नि, पृथ्वी, जल और वायुकी भी सत्ता नहीं थी—उस समय एक मात्र सत् ब्रह्म अर्थात् सदाशिव की ही सत्ता विद्यमान थी, जो अनादि और चिन्मय कही जाती है। उन्हीं भगवान् सदाशिव को वेद, पुराण और उपनिषद् तथा संत-महात्म आदि ईश्वर तथा सर्वलोकमहेश्वर कहते हैं।